मौसम में बदलाव वातावरण के विभिन्न तत्वों में बदलाव लाता है | जहाँ वर्षा ऋतु में हर तरफ हरियाली छा जाती है, वसंत में पेड़ों पर नयी कोपलें आती हैं, वहीँ, शरद और ग्रीष्म ऋतु में धीरे-धीरे पेड़ अपना हरा आवरण उतार देते हैं | मौसमी बदलाव पशुओं पर भी असर करता है | शीतनिद्रा या शीतस्वाप इसका प्रमुख उदाहरण है | क्योंकि मानव जाति इस पारितंत्र का हिस्सा है, मौसम में बदलाव का प्रभाव मनुष्य पर भी पड़ता है |
मानव शरीर में स्वयं को वातावरण के अनुकूल बनाने की अद्भुत क्षमता है | किन्तु, कुछ परिस्थितयों में हमारा शरीर मौसमी बदलाव के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं पाता है | जिसके परिणाम स्वरुप शारीरिक दोष में असंतुलन हो जाता है | इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियां होने की सम्भावना बढ़ जाती है |
त्तश्यशीताध्यादाहरद बलं वर्णाश्च वर्धते ।
यस्यऋतुसात्मयम विदितं चेष्टाहारव्यापाश्रयं ।।
जिस व्यक्ति को मौसम के अनुकूल आहार नियम का ज्ञान होता है और जो उसे अमल में लाता है, उसकी शक्ति में वृद्धि होती है और वर्ण तेजस्वी होता है |
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से ठंढी वायु चलती है जिससे ठंडक और रूखेपन में वृद्धि होती है | जलवायु में परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए जीवनशैली में कई बदलाव लाने पड़ते हैं | यही वह समय है जब फ्लू, सर्दी-ज़ुकाम, खांसी और साइनोसाइटिस जैसी समस्याएं उन्पन्न होती हैं |
हम अपने शरीर को इस बदलाव के अनुकूल बनाने के लिए निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं :
पालन करें :
- नियमित व्यायाम : अध्ययन से ज्ञात होता है कि शरद ऋतु में लिपिड प्रोफाइल में असंतुलन ज़्यादा समभावना रहती है | ह्रदय तथा रक्तवाहिकाओं सम्बन्धी बीमारियों का भी खतरा रहता है | इसलिए मौसम अनुरूप वस्त्र धारण कर शारीरिक गतिविधियों में भाग लें जैसे, चलना, जॉगिंग, योग इत्यादि |
- मौसमी खाद्य पदार्थ और मेवे आहार में शामिल करें - आयुर्वेद के अनुसार आंवला, नारंगी, मोसम्बी जैसे फल, शकरकंद, सूखे बीन्स, मटर जैसी सब्ज़ियां और बादाम, अखरोट, खुमानी, अंजीर, खजूर जैसे मेवे, खाएं | इनमें विटामिन स प्रचुर मात्रा में होता है | ये खाद्य पदार्थ इस मौसम में होने वाले संक्रमण से शरीर की रक्षा करते हैं | इनमें मौजूद अच्छा वसा ठण्ड से राहत देता है और बी-विटामिन और खनिज पदार्थ शरीर को चुस्त और तरोताज़ा रखते हैं |
- अन्य खाद्य पदार्थ और मसाले - तिल और उसने बानी खाद्य सामग्री, गन्ना और गुड़, वसा युक्त मछली, घी, दूध और दुग्ध पदार्थ, काली मिर्च, अदरक, जीरा, हल्दी इत्यादि कैल्शियम, आयरन और अच्छे वसा के स्त्रोत हैं | उक्त मसाले पाचन में सहायक होते हैं | इनमें सूजन अवरोधक और जीवाणुरोधी क्षमता भी होती है |
- शुष्कता से बचने के लिए तिल के तेल की मालिश और गुनगुने पानी से स्नान का सुझाव दिया जाता है |
- ताज़ा, गर्म भोजन ही ग्रहण करें |
- विटामिन डी के लिए हर रोज़ काम से काम ३० मिनट तक धूप में रहें |
बचें :
- अत्यधिक ठण्ड से बचें; ज़्यादा देर तक बाहर न रहें |
- ठण्डा भोजन और पेय पदार्थ ग्रहण न करें |
- संसाधित खाद्य पदार्थ न लें, ताज़े खाद्य पदार्थ भोजन में शामिल करें |
- रात को देर से न सोएं |
- आयरूवेद के अनुसार कसैले खाद्य पदार्थों से बचें | ये वात दोष उत्प्रेरक हैं |
शरद ऋतु में होने वाली स्वास्थय सम्बन्धी समस्याएं और उनका निवारण
- सर्दी-ज़ुकाम : एक चौथाई सोंठ का चूर्ण, एक चौथाई काली मिर्च का चूर्ण, ४-५ तुलसी के पत्ते, १ लौंग, दालचीनी का एक छोटा टुकड़ा, आधा चम्मच अजवाइन के दाने - दो कप पानी में ये सभी उबालें। मिश्रण आधा होने पर गुड़ मिलाएं | दिन में दो बार आधा-आधा कप सेवन करें |
- शुष्करूखी त्वचा - गुनगुने धन्वंतरि तेल की नियमित मालिश करें, चेहरे पर इलादि तेल लगाएं |
- ठण्ड और बंद नाक की वजह से होने वाला सर दर्द - नासिका छिद्र में सोने से पहले षड्बिन्दु/अनुतैल की २ गुनगुनी बूदें डालें |
- ठण्ड से बचने के लिए - रात को सोने से पहले यूकेलिप्टस तेल की बूदें की भाप लें |
- कब्ज - रात को गन्धर्व हरितकी चूर्ण की गुनगुने पानी के साथ माध्यम खुराक लें |
- फटे हुए होंठ और एड़ियाँ - कैलाश जीवन का उपयोग दोनों के लिए सहायक है | खाली पेट गाय के घी का सेवन भी निवारण में मदद करता है |
- फुलाव/सूजन - एक चम्मच हिंग्वाष्टक चूर्ण गुनगुने पानी के साथ भोजन के आधा घंटा बाद लें |
मौसमी बदलाव के प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए आहार , व्यायाम और नींद में मौसम अनुकूल परिवर्तन लाना हितकर होता है | इससे हमारे शरीर को जलवायु परिवर्तन का कुशलता पूर्वक सामना करने में मदद मिलती है |