शतावरी


शतावरी का वानस्पतिक नाम एस्पेरेगस रेसमोसस है | इसे सौ जड़ों वाली अथवा सौ पतियों वाली औषधि भी कहते हैं | माना जाता है कि इससे यौन एवं प्रजनन शक्ति बढ़ती है |

आयुर्वेद में शतावरी की जड़ औषधि के रूप में इस्तेमाल की जाती है | इसे  औषधियों की रानी माना जाता है क्योंकि पारम्परिक रूप से इसका इस्तेमाल गर्भधारण की उम्र वाली स्त्रियों में शक्तिवर्धन के लिए किया जाता था |

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शतावरी के शीतलता प्रदान करने वाले और एंटीऑक्सीडेंट गुण के कारण, आजकल इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की स्वास्थय संबधी समस्याओं के उपचार हेतु होता है |

इस लेख में हम इस गुणकारी औषधि के बारे में चर्चा करेंगे |

शतावरी की आयुर्वेदिक विशिष्टता

  • रस (स्वाद) - कड़वा, मधु
  • वीर्य (ऊर्जा/शक्ति) - शीतल
  • विपक (पाचन उपरांत प्रभाव) - मधु
  • गुण - औषधीय, गरिष्ठ
  • दोष का प्रभाव - VP का संतुलन; K+
  • अन्तर्निहित प्रमुख तंतु - सातों तंतु
  • अन्तर्निहित तंत्र - पाचन तंत्र, मादा प्रजनन तंत्र, स्वशन तंत्र
  • संकेत - यौन दुर्बलता, बांझपन, रजोनिवृत्ति, हॉट फ्लैशेस, एस्ट्रोजेन की कमी, नपुंसकता, मासिक धर्म की अनियमितताएं, स्तनपान में कमी, हाईपरएसिडिटी, पेट में अलसर, डायरिआ, निर्जलीकरण, खांसी, गले में खराश, जीर्ण बुखार, कोलाइटिस, क्रोह्न रोग, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल नली में सूजन, कायाकल्प चिकित्सा

महिलाओं के स्वस्थ्य के लिए

  • स्तनपान में कमी से ग्रसित महिलाओं में यह दूध का निर्माण बढ़ाती है |
  • कामलिप्सा को बढ़ाती है
  • यौन अंगों में सूजन कम करती है |
  • योनिक शुष्कता रोकती है और योनि का पी एच संतुलित करती है |
  • इसमें मुख्यतः सैपोनिन्स होता है जो महिलाओं में एस्ट्रोजेन विनियामक का कार्य करता है जिससे मासिक धर्म और उससे सम्बंधित समस्याओं के उपचार में सहायता मिलती है |
  • महिलाओं के लिए कामोद्दीपक का कार्य करती है |
  • केंद्रीय स्नायुतंत्र को शिथिल करती है जिससे रजोनिवृत्ति के दौरान आने वाले हॉट फ्लैशेस और रात में आने वाला पसीना कम होता है |
  • शतावरी गर्भस्थापक भी है| यह गर्भपात निवारण में सहायक है |
  • यह गर्भपोषक है | इसकी उपचय कार्यवाई भ्रूण एवं गर्भ धारण की हुई महिला के लिए लाभकारी है |
  • यह चिंता से सम्बन्धी समस्याओं में भी लाभकारी है |

पाचन सम्बन्धी समस्याओं के लिए

  • शतावरी की सूखी जड़ को पीस कर खाने से पेट साफ़ होता है |
  • शोध से ज्ञात हुआ है कि शतावरी, पाचक एंजाइम (कार्बोहायड्रेट के लिए एमिलेज और वसा के लिए लाइपेस) की क्रिया बढ़ा कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाती है |
  • पेप्टिक अलसर, अल्सरेटिव कोलाइटिस और इंफ्लेमेटरी बोवेल रोग के उपचार में भी शतावरी सहायक है |

अन्य स्वास्थय सम्बन्धी लाभ

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाती है - शतावरी की जड़ में सेपोजेनिन नाम का अवयव रोग-प्रतिरोध उत्प्रेरक होता है |
  • इम्मुनोएडजुवेंट क्षमता - एक अध्ययन के अनुसार वैक्सीन में शतावरी मिलाने से संक्रमण के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में विकास होता है |
  • एन्टीऑक्सिडन्ट क्रिया - शतावरी की उच्च एंटीऑक्सीडेंट क्रिया इसे आयुर्वृद्धि विरोधक बनाती है | यह त्वचा पर होने वाली फ्री-रैडिकल क्षति को रोकती है |
  • डिप्रेशन के उपचार में सहायक - 2009 में मूषक प्रजाति पर हुए एक अध्ययन के अनुसार, शतावरी में मिलने वाले एंटीऑक्सीडेंटडिप्रेशन अवरोधक होते हैं | यह मष्तिष्क के न्यूरोट्रांसमिटर पर भी प्रभाव डालते है |
  • गुर्दे की पथरी की रोकथाम - शतावरी की जड़ मूत्र में मैग्नीशियम का स्तर बढ़ा कर गुर्दे में पथरी बनने से बचाव करती है | मैग्नीशियम का पर्याप्त स्तर पथरी से बचाव में लाभकारी माना जाता है |

खुराक और दुष्प्रभाव (आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श के बाद ही लें )

  • खुराक - शतावरी चूर्ण - 2-4 ग्राम दिन में 3 बार
  • शर्टावरी कैप्सूल - 2 कैप्सूल दिन में 3 बार
  • शतावरी कल्प - 1 चम्मच दूध या पानी के साथ
  • शतावरी घृतम - 1 चम्मच दिन में 2 बार

चिकित्सक के परामर्श अनुसार ली गयी खुराक से शतावरी का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है |


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