विटामिन-डी का अभाव


अवलोकन

जहां एक ओर मोटापा, मधुमेह (डायबिटीज़) व अन्य जीर्ण समस्याएं आज विश्व व्यापक चर्चाओं का मुख्य विषय हैं वहीं दूसरी ओर संपूर्ण जनसंख्या में पोषण संबंधित कमियों में एक अप्रत्यक्ष वृद्धि हुई हैl कुपोषण के दो पहलू हैं। पहला जिसमें अतिपोषण के परिणामस्वरुप मोटापे जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जो अत्याधिक उष (कैलोरी) व कम शारीरिक गतिविधियों के कारण होता है| वहीं दूसरा अल्पपोषण है, जिसमें विशेष रूप से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैंl 

पहले कुपोषण को भोजन की उपलब्धता की कमी वह गरीबी से परिभाषित किया जाता था, परंतु वर्तमान में भोजन की मात्रा को नहीं अपितु भोजन की गुणवत्ता में कमी को कुपोषण का कारण पाया गया है| भोजन सरलता से प्राप्त किया जा सकता है किंतु अच्छी गुणवत्ता के भोजन की उपलब्धता कम है। इसके निम्लिखित मुख्य कारक हैं: 

  • उपलब्ध फलों व सब्ज़ियों की अवमानक गुणवत्ता
  • भोजन के अनुपयुक्त विकल्पों के कारण स्थूल व सूक्ष्म पोषक तत्व में असंतुलन
  • पोषण संबंधी ज्ञान का अभाव

विटामिन डी का अभाव 

विटामिन डी को सनशाइन (सूरज की रोशनी से प्राप्त होने वाला) विटामिन भी कहा जाता है, क्योंकि मानवीय शरीर  द्वारा  इसका संश्लेषण सूरज के प्रकाश की उपस्थिति में  होता है| विटामिन डी वसा विलेय (वसा में घुलनशील) विटामिन है जो शरीर द्वारा की जाने वाली कई क्रियाओं के लिए आवश्यक है| विटामिन डी डेफिशियेंसी (वी डी डी) वर्तमान काल में विटामिन डी के अभाव की समस्या बहुत आम है, जिससे विभिन्न आयु वर्ग की ७५% से अधिक जनसंख्या ग्रसित है| 

विटामिन डी के निम्नलिखित कार्य हैं: 

  • मानव कंकाल के विकास व हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए 
  • शरीर द्वारा कैल्शियम के अवशोषण  के लिए आवश्यक है 
  • न्यूरोमस्कुलर (तंत्रिकाओं व मांसपेशियों से संबंधित) विकास के लिए 
  • हॉर्मोन के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक  है 
  • प्रतिरोधक क्षमता के बढ़ाने में शरीर को सहायता प्रदान करता है 
  • कर्क रोग (कैंसर) के निवारण में सहायक - किए गए अनेक अध्ययन, विटामिन डी के कर्क रोग के प्रति सुरक्षात्मक प्रभाव को प्रस्तावित करते हैं जिसके कारण कर्क रोग की घटनाओं में गिरावट देखी गई है| 

लक्षण

विटामिन डी के अभाव के लक्षण 

वी डी डी के कई लक्षण आमतौर पर अन्य बीमारियों के समरूप होते हैं इसी कारणवश कई बार वी डी डी अनभिज्ञेय रह जाती है व इसकी व्यापकता के अनुमान की सही जानकारी नहीं प्राप्त हो पाती हैl वी डी डी के देखे जाने वाले कुछ सामान्य लक्षण निम्नलिखित  हैं: 

  • प्रतिरक्षक क्षमता में कमी - जिसके कारण प्राय: जुखाम, संक्रामक जुखाम व श्वसन संक्रमण होते हैंl 
  • थकावट -  रक्त में विटामिन डी के स्तर में अत्यधिक कमी के कारण थकान की अनुभूति होती है व ऊर्जा के स्तर पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैl 
  • विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण व हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी है| अतः इसकी कमी से कैल्शियम के स्तर में गिरावट होती है जो पीठ, पैर, पसलियों व जोड़ों के दर्द का कारक है| 
  • ज़ख्म भरने में बाधक - वी डी डी से ग्रसित लोग सूजन व संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जिसके कारण ज़ख्म भरने में दिक्कतें आती हैं, साथ ही ज़ख्म भरने की अवधि भी बढ़ जाती है| 
  • रिकेट्स (अपर्याप्त विटामिन डी के कारण होने वाला विकार) से ग्रसित बच्चों में वी डी डी के कारण हड्डियां नर्म व उनका कमज़ोर विकास होना| 
  • बालों का झड़ना - वी डी डी से ग्रसित महिलाओं में आमतौर पर अत्यधिक बाल झड़ने की समस्या देखी गयी है|

वी डी डी संबंधित जटिलताएँ 

  • अस्थिमृदुता या ओस्टीयोमलेशिया - अस्थिमृदुता वयस्कों में हड्डी के मुलायम होने की वह स्थिति है, जिसमें हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है| यदि सही समय पर विटामिन डी के अभाव को संशोधित नहीं किया जाए तो यह ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की कमजोर व नाज़ुक अवस्‍था) नामक रोग को जन्म देती है| इस स्थिति में लघु अस्ति घनत्व के कारण विशेषत: कूल्हे व कलाई की हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ जाता हैl 
  • मधुमेह - टाइप-२ मधुमेह से ग्रसित लोगों में मधुमेह जनित दृष्टिपटल विकृति (रेटिनोपैथी) को वी डी डी से जुड़ा हुआ पाया गया हैl   
  • हृदय संबंधित रोग - अध्ययन से प्राप्त जानकारी, वी डी डी व शारीरिक सूजन के साहचर्य की ओर केंद्रित है जो हृदय संबंधित रोगों का कारक हो सकते हैंl 
  • क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (सी के डी या गुर्दे का जीर्ण रोग) - सी के डी से ग्रसित लोगों में वी डी डी विशेषत: निम्न श्रेणी की सूजन के रूप में पाई जाती है जो सी के डी की जटिलताओं को बढ़ाने का महत्वपूर्ण कारक हैl 
  • तंत्रिका संबंधी विकृति -  हाल ही में किए गए अध्ययनों में मनोभ्रंश (डिमेंशिया), संज्ञानात्मक बधिरता (कॉग्निटिव इंपेयरमेंट) व वी डी डी के मध्य साहचर्य होने की जानकारी  प्राप्त होती है| 


कारक

  • भौगोलिक स्थान :  उच्च अक्षांश पर तथा विषुवत रेखा से दूरी पर रहने वाले लोग वी डी डी के प्रति अधिक प्रवृत्त होते हैं, क्योंकि पूरे वर्ष सूर्य से इनकी अनावृत्ति (एक्सपोज़र) कम होती है| 
  • वर्ण या त्वचा का रंग: सांवले लोगों में मेलेनिन रंगद्रव्य अधिक होने के कारण विटामिन डी का संश्लेषण कम हो पाता है, क्योंकि मेलेनिन रंगद्रव्य धूपरोधक के रूप में कार्य करता है| इसी कारण वी डी डी से ग्रसित जनसमूह में अफ्रीकी अमेरिकीयों का प्रतिशत अधिक हैl 
  • आयु : उम्र के साथ शरीर की विटामिन डी बनाने की क्षमता कम हो जाती है, अतः बुज़ुर्गों में आमतौर पर  विटामिन डी का स्तर निम्न रहता हैl 
  • मोटाप : मोटपा शरीर में विटामिन डी की जैव उपलब्धता कम करता है, जो मोटे लोगों को वी डी डी के प्रति अतिसंवेदनशील बनाता है| 
  • जीवनशैली :  धूप की रोशनी के संपर्क में कम जाने से, धूप में जाते वक्त शरीर को पूर्ण रूप से कपड़ों से ढ़क कर रखने व थोड़े समय के लिए भी बाहर जाने पर भी सनस्क्रीन (धूप रोधक क्रीम) के उपयोग से शरीर को पर्याप्त मात्रा में धूप नहीं प्राप्त हो पाती जिसके कारण विटामिन डी के संश्लेषण में बाधा आती है| 
  • आहार : भोजन में मूलतः डेयरी खाद्य पदार्थों की अधिकता, मछली, वसा मुक्त दूध व अनाज का सेवन, विटामिन डी के स्तर को कम करता है जिसके फलस्वरूप शरीर में विटामिन डी का अभाव हो जाता है|

उपचार

विटामिन-डी की कमी से निजात पाने व उसके बेहतर प्रबंधन के लिए अपने भोजन में विटामिन-डी की प्रचुरता वाले खाद्य  पदार्थों  के उपयोग के साथ सूर्य के प्रकाश में अनावरण करेंl  

सूर्य का प्रकाश  
अधिमानतः सुबह १० से दोपहर २ बजे (क्योंकि इस समय के दौरान अधिकतम  अल्ट्रावॉयलेट बी किरणें प्रेषित होती हैं) के बीच सनस्क्रीन (धूपरोधक क्रीम) के लगाए बिना, बाहों व चेहरे की त्वचा का सूर्य के प्रकाश में ३० मिनट उद्धरण विटामिन डी के पर्याप्त मात्रा में संश्लेषण के लिए आवश्यक है| 

आहार - शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों ही स्रोतों से विटामिन डी प्राप्त किया जा सकता है| उदाहरणार्थ: वसा युक्त मछली जैसे ट्यूना, मैकेरल व सैल्मन 
 

  • विटामिन डी युक्त डेयरी खाद्य उत्पाद, संतरे का रस, सोया, दूध व अनाज 
  • बीफ लिवर 
  • पनीर 
  • अंडे की जर्दी

पूरक - बाज़ार में कैल्शियम व विटामिन डी-३ से संयुक्त कई पूरक उपलब्ध हैं। विटामिन डी के जीर्ण अभाव की स्थिति मे इनका उपयोग किया जा सकता है| 

निष्कर्ष

अंततोगत्वा, सार यही है कि अपने भोजन में संसाधित खाद्य पदार्थों को ना कहें और घर के पके हुए भोजन का ही सेवन करें। ताजी उपज वाले साबुत अनाज के साथ सूर्य की रोशनी का अपेक्षित अनावरण, पोषण संबंधी कमियों को दूर रखता है व आपको एक खुशहाल व स्वस्थ जीवन जीने में  सहायता करता है| 

 


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