दमा


संक्षिप्त विवरण

दमा (अस्थमा) श्वसन मार्ग में सिकुड़न, सूजन व अत्यधिक बलगम बनने की वह स्थिति है जिसमें श्वसन क्रिया दुष्कर हो जाती है। खाँसी आना, श्वास लेते समय घरघराहट और श्वास लघुता, दमा के कुछ अन्य लक्षण हैं।

Asthma Illustration

लक्षण

दमा के विकारिय संकेत व लक्षण :

  • खाँसी व श्वास लेते समय घरघराहट (व्हीज़िंग) की समस्या जो ज़ुकाम व संक्रामक ज़ुकाम (फ़्लू) के विषाणुओ की उपस्थिति में गंभीर हो जाती है
  • उच्छवास के समय घरघराहट व सीटी बजने की ध्वनि आना (दमा से ग्रसित बच्चों में श्वास की घरघराहट एक सामान्य लक्षण हैं)
  • श्वास लघुता, खाँसी व श्वासन के समय घरघराहट के कारण सोने में तकलीफ़
  • सीने में जकड़न या दर्द
  • श्वास लघुता

दमा की स्थिति बिगड़ने के संकेत:

  • शीघ्र राहत के लिए प्रायः इनहेलर का इस्तेमाल
  • श्वास लेने में अधिक कठिनाई होने की अनुभूति (जो पीक फ्लो मीटर के माध्यम से पता लगाया जा सकता है| पीक फ्लो मीटर- फेफड़ों की कार्यकुशलता को मापने का यंत्र है)
  • दमा के विकारिय संकेत व लक्षणों का अक्सर आना और अधिक कष्टप्रद होना

कुछ लोगों में  दमा के विकारिय संकेत व लक्षण निम्नलिखित परिस्थितियों में उत्तेजित हो जाते हैं:

  • प्रत्यूर्जता (एलर्जी) उत्प्रेरित दमा: वायुवाहित तत्त्वों जैसे पुष्प-पराग कण, फफूंदी, बीजाणु, तिलचट्टा के अपशिष्ट, व पालतू जानवरों के त्वचा के कण (पालतू पशुओं की रूसी) व उनका सूखा लार
  • व्यावसायिक दमा: कार्यस्थल पर मौजूद उत्तेजकों जैसे कि रासायनिक धुंआ, गैसें व धूल के कारण
  • व्यायाम उत्प्रेरित दमा: हवा का बदलता तापमान ( ठंडा या गर्म) दमा की स्थिति को अधिक प्रभावित करता है

दमा से ग्रसित बच्चों में देखें जाने वाले लक्षण निम्नलिखित हैं:

  • ठंड के प्रति अति संवेदनशीलता जो प्राय: सीने में केंद्रित होती है
  • तीव्रता से श्वास लेने पर पसलियों व गर्दन के आसपास की त्वचा में  खिंचाव महसूस होना
  • श्वसन क्रिया में कठिनाई
  • विशेषतः रात के समय खाँसी आना
  • प्रायः और लंबे समय तक खाँसी आना
  • सामान्य गतिविधियों के दौरान भी सांस फूलना
  • खाने-पीने में कठिनाई की अनुभूति

दमा से ग्रसित बड़े बच्चों में आमतौर पर देखे जाने वाले लक्षण:

  • खाँसी आना
  • सीने में जकड़न महसूस होना
  • शारीरिक गतिविधियों के पश्चात सांस फूलने की अनुभूति
  • श्वास छोड़ना के दौरान घरघराहट या तीव्र ध्वनि आना

दमा के कारक

विभिन्न प्रकार के प्रत्यूर्जतोत्पादक तथा उत्तेजक पदार्थों के संपर्क में आने से दमा के विकारिय संकेत व लक्षण अति सक्रिय हो जाते हैं| प्रत्येक व्यक्ति में दमा को उत्तेजित करने वाले कारक भिन्न होते हैं जो कि निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • जीईआरडी - एसिड भाटा रोग (गैस्ट्रोएसोफेगल प्रतिवाह रोग या जीईआरडी) वह स्थिति है जिसमें पेट का अम्ल (एसिड) गले तक वापस भर आता है
  • झींगा, सूखे फलों, संसाधित आलू, बीयर व वाइन जैसे  खाद्य तथा पेय पदार्थों में मौजूद सल्फाइड व संरक्षक तत्व
  • तनाव तथा भावोत्तेजना
  • बीटा-अवरोधक (बीटा-ब्लॉकर्स), एस्पिरिन, इबुप्रोफेन (एडविल, मोट्रिन आईबी इत्यादि) व नेपरोक्सन (एलेव) जैसी दवाइयाँ
  • वायु प्रदूषक व उत्तेजक पदार्थ जैसे धुआँ
  • सर्द हवा
  • शारीरिक गतिविधियाँ (व्यायाम उत्प्रेरित दमा)
  • श्वास संक्रमण जैसे सर्दी-जुकाम (कॉमन कोल्ड)
  • वायुवाहित तत्त्वों जैसे पुष्प-पराग कण, धूल में मौजूद सूक्ष्म कीटाणु, फफूंदी, बीजाणु व पालतू जानवरों के त्वचा के कण (पालतू पशुओं की रूसी) व तिलचट्टा के अपशिष्ट के कण।

रोग मूल्यांकन / रोग निदान

  • स्पायरोमेट्री द्वारा फेफड़ों की क्रियाशीलता की जांच कर दमा  का पता लगाया जाता है। इस जांच से पता चलता है कि आप कितनी मात्रा में और कितनी शीघ्रता से उच्छवास कर पाते हैं। यह जांच दमा  और फेफड़ों से संबंधित अन्य बीमारियों में अंतर बताती है|
  • एलर्जी की जांच: इससे लोगों में गंभीर एलर्जिक दमा  का पता लगाया जा सकता है। यदि आपको गंभीर एलर्जिक दमा  है तो आपको ऐसी दवाइयों की आवश्यकता हो सकती है जो आपको प्रत्यूर्जतोत्पादक पदार्थों (एलर्जेन) के प्रति कम संवेदनशील बनाएं।
  • इयोसिनोफिल्स की अधिक संख्या: इयोसिनोफिल्स एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका है। यदि लोगों को कोई एलर्जिक बीमारी या संक्रमण होता है तो इस कोशिका की मात्रा बढ़ जाती है। एलर्जिक दमा , एस्प्रिन उत्प्रेरित दमा  और लेट ऑनसेट दमा में इयोसिनोफिल्स की संख्या अधिक पाई जाती है|
  • नाइट्रिक ऑक्साइड जांच : सांस द्वारा बाहर छोड़ी जाने वाली नाइट्रिक ऑक्साइड की मात्रा का फेफड़ों में सूजन से सीधा संबंध है। अधिक नाइट्रिक ऑक्साइड का निकलना अधिक सूजन को दर्शाता है।

बचाव

  • शीघ्र राहत श्‍वसित्र (क्विक रिलीफ इनहेलर) के बढ़ते उपयोग की ओर ध्यान दें: यदि आपका क्विक रिलीफ इनहेलर जैसे कि एल्ब्यूट्रोल का इस्तेमाल बढ़ रहा है तो ध्यान दें। अपने डॉक्टर से उपचार में ज़रूरी परिवर्तन हेतु परामर्श लें।
  • अपनी दवाई निर्देशानुसार लें : यदि आपको दमा की परेशानी ठीक होती प्रतीत हो रही है तो भी बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी बदलाव ना लाएं। डॉक्टरी जांच के दौरान अपनी दवाइयां साथ में ज़रूर लाएं ताकि आपका डॉक्टर आपको बता सके कि आप दवाई ठीक से ले रहे हैं या नहीं।
  • पीक फ्लो का माप कम होना निकटस्थ दौरे की चेतावनी ही सकता है अतः ऐसा होने पर निर्देशानुसार अपनी दवाई लें और कोई भी ऐसा कार्य बंद कर दें जिससे दौरा उत्प्रेरित होने की संभावना हो। यदि लक्षण में सुधार न दिखे तो स्वास्थ्य योजना (एक्शन प्लान) के निर्देशानुसार स्वास्थ्य सहायता लें।
  • दमा के दौरों की शुरुआत में ही पहचान कर उसका सामयिक इलाज करें: शीघ्रता बरतने से दौरों के गंभीर होने की संभावना कम हो जाती है।  इससे लक्षणों को काबू में रखने के लिए आपको ज्यादा दवाई की आवश्यकता भी नहीं पड़ती।
  • श्वसन क्रिया अनुश्रवण: इससे आप दमा  का दौरा पड़ने के लक्षणों की पहचान कर पाएंगे - जैसे खांसी, गले में घरघराहट और सांस लेने में कठिनाई।  क्योंकि आपके फेफड़ों की क्रिया लक्षण दिखने से पहले ही कम हो सकती है, इसलिए नियमित तौर पर पीक एयर फ्लो मीटर से अपने श्वास के प्रवाह को घर पर रिकॉर्ड करें।
  • दमा  उत्प्रेरकों की पहचान करें और उनसे बचें: घर के बाहर मिलने वाले कई एलर्जेन और उत्तेजक पदार्थ - पराग, फफूंद, ठंडी हवा और वायु प्रदूषण - दमा  का दौरा पैदा कर सकते हैं। दमा उत्प्रेरक व उत्तेजक कारकों की सही पहचान कर इन कारकों से बचने के उपाय करें।
  • श्‍लैष्मिक ज्‍वर (इंफ्लुएंजा) और  फेफड़ों की सूजन (निमोनिया) का टीका लगवाएं: समय पर टीकाकरण इंफ्लुएंजा और निमोनिया होने से बचाव प्रदान करता है। इससे दमा  उत्प्रेरित नहीं होने पाता।
  • दमा  का इलाज एक निरंतर प्रक्रिया है जिसकी नियमित जांच और उपचार होना आवश्यक है। उपचार के ऊपर स्वयं का नियंत्रण होने से जीवन भी नियंत्रित प्रतीत होता है।
  • दमा  एक्शन प्लान (योजना) का पालन: अपने  डॉक्टर और स्वास्थ्य सेवा टीम की मदद से दवाई लेने और दमा  के दौरे को संभालने की सविस्तार योजना बनाएं| उस योजना का अवश्य पालन करें|

उपचार

दमा  का उपचार

  • शीघ्र राहत प्रदान करने वाली दवाइयां, जिन्हें रेस्क्यू मेडिकेशन भी कहते हैं, सांस की नली की मांसपेशियों को शिथिल कर आराम प्रदान करती हैं| यदि आपको यह दवाइयां हफ्ते में दो बार से अधिक लेनी पड़ रही हैं तो आपका दमा  नियंत्रण में नहीं है| जिन लोगों में व्यायाम उत्प्रेरित दमा है वह व्यायाम से पहले बीटा एगोनिस्ट ले सकते हैं|
  • नियंत्रक दवाईयां सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि वे दमा की रोकथाम में अहम भूमिका निभाती हैं| यह दवाइयां सांस की नली में सूजन को कम कर उत्प्रेरकों से बचाती हैं|

लंबे समय तक नियंत्रण प्रदान करने वाली दवाइयां

लोंग एक्टिंग एंटीकॉलाइनर्जिक: यह फेफड़े के भीतर के वायु मार्गों को शिथिल और बड़ा (अभिस्तारण) करती है जिससे सांस लेने में आसानी होती है| इन्हें श्वासनलिकासारक ( ब्रोंकोडाइलेटर्स) भी कहा जाता हैl

  • टायट्रोपियम ब्रोमाइड एक ऐसी एंटीकॉलाइनर्जिक है जिसे 6 साल या उससे ऊपर की उम्र के लोग ले सकते हैं| यह दवाई नियमित दवाइयों के साथ  लेना चाहिए|
  • लोंग एक्टिंग बीटा एगोनिस्ट: दवाई का वह प्रकार जिसे श्वासनलिकासारक (ब्रोंकोडाइलेटर) कहते हैं| यह सांस की नली को खोलती है|
  • थियोफिलिन वह ब्रोंकोडाइलेटर है जिसका इस्तेमाल दमा के उन लक्षणों के लिए किया जाता है जो अन्य दवाइयों से नियंत्रण में नहीं आते है|
  • मस्तूल सेल स्टेबलाइजर  ( मास्ट सेल स्टेबलाइजर) उन रसायनों  को उत्पन्न होने से रोकते हैं जिन से सूजन पैदा हो सकती है|
  • लुकोट्रिन मोडीफायर्स उन रसायनों को अवरुद्ध करते हैं जिनसे सूजन पैदा होती है|
  • यदि आपको मध्यम से गंभीर प्रत्यूर्जता उत्प्रेरित दमा और ऐसी सूजन है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर कुछ दवाइयों का असर नहीं होता तो इम्यूनोमोड्यूलेटर इंजेक्शन दिया जाता है|
    • ओमालिजुमाब एक प्रतिरक्षी है जो इम्यूनोग्लोबुलीन ई  को रोकती है | इसे दमा  अनुरक्षण दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है| यह एलर्जेन को दमा  उत्प्रेरित करने से रोकती है|
    • मेपोलिजुमब  इओसिनोफिल्स की संख्या को नियंत्रण में रखती है| इसका उपयोग अनुरक्षण चिकित्सा दवाई की तरह किया जाता है|
    • रेसलीजुमब दमा अनुरक्षण दवाई है जिसका उपयोग नियमित दमा  की दवाइयों के साथ किया जाता है|  यह दमा  के गंभीर दौरों को नियंत्रण में लाती है। 

यह दवाइयां दमा  के दौरे के लक्षण जैसे खांसी, सीने में जकड़न और घरघराहट से जल्दी राहत प्रदान कराती हैं|

  • सिस्टमिक कॉर्टिस्टेरॉइड्स, सूजन से राहत प्रदान करने वाली वह दवाइयां हैं जो दमा के लक्षण को नियंत्रण में रखती हैं|
  • एंटीकॉलाइनर्जिक: इनका इस्तेमाल श्वासनलिकासारक (ब्रोंकोडाइलेटर) के साथ या उसके स्थान पर किया जा सकता है |
  • शॉर्ट एक्टिंग बीटा एगोनिस्ट श्वासनलिकासारक (ब्रोंकोडाइलेटर)।

दमा  की दवाइयां -  इनहेलर, नेबुलाइजर, गोली

दमा  की दवाइयां कई प्रकार से ली जा सकती है| कुछ को सांस के साथ मापित  खुराक श्‍वसित्र (मीटर्ड डोज इनहेलर), शुष्‍क चूर्ण  श्‍वसित्र  (ड्राई पाउडर इनहेलर) या कणित्र (नेबुलाइजर) के साथ अंदर लिया जाता है| कुछ दवाइयों को द्रव्य या गोली के रूप में लिया जाता है तथा कुछ दवाइयां अंतःक्षेपण  (इंजेक्शन) द्वारा दी जाती है| दमा की कुछ दवाइयों को साथ में भी लिया जा सकता है | 

कुछ  श्‍वसित्रों (इनहेलर्स) में दो अलग-अलग दवाइयां मिलाई जाती है ताकि उन्हें सांस की नली में शीघ्रतापूर्वक  पहुंचाया जा सके|  
 

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद में दमा  के उपचार की एक स्पष्ट परिभाषित पद्धति है और हमें यह बताती है कि दमा का उपचार दूसरे तरीके से करना चाहिए जो निम्नलिखित है:

स्नेह बस्तिमृते  केचिदूर्ध्व चाधश्च शोधनम ! मृदु प्रणयातं श्रेष्ठम श्वासदिनमादिशन्ति हि !!

अतः दमा के उपचार के लिए सर्वप्रथम वमन और विरेचन द्वारा कारक दोषों का शरीर से शोधन किया जाता है | यह उपचार की प्रथम आधारशिला है। औषधियों का प्रयोग इसके उपरांत होता है| इस चिकित्सा प्रणाली में मुख्यत: मरीज के  स्रोत मार्गों का शोधन कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि श्वसन मार्ग में कोई अवरोध ना हो| श्वसन नली का शोधन होने के पश्चात अगला कदम शरीर में विषाक्त पदार्थों को उत्पन्न होने से रोकना होता है जिससे बाद में कोई तकलीफ ना हो |

 


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